Page 39 - दिल्ली नगर निगम पत्रिका 'निगम आलोक-2024'
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िृक्ष का जरीिन चक्र                                               भाषा







            बिपन िें एक वृक्ष लगाया,         यहाँ पर एक सड़क बनेगरी,        भाषा वह है आपकी, दजसिे उठें दविार।
              पानरी िेकर सिक्ष बढ़ाया ।       दवकास की झड़री लगेगरी ।           कदलपत िन की कलपना, लेतरी तब
            जान से पयारा लगता र्ा वो,       अब तो उसको हरना हरी होगा,                    आकार ।।

            सबसे न्यारा लगता र्ा वो ।        बेिौत उसे िरना हरी होगा ।
                                                                            दहंिरी बांिे िेश को , एक सूरि   पररवार ।
               िरीठे-िरीठे फल िे िेता,      सभरी प्यास दवफल रह गए,           जोड़े सारे दवश्व को, सात सिंिर पार ।।

             शरीतल ्ाया भरी कर िेता ।       आशरीवमािन दनषफल ढह गए ।
           तृप्त हो जाते फलों को खाकर,         रादरि को संिशमा पाकर,        तैतरीस वयंजन सार् िें, तेरह सवर के संग ।
             सुप्त हो जाते ्ाया पाकर ।      दवहल हो गया सहसा जाकर ।
                                                                             भाषा दहंिरी ने भरे, जरीवन िें सतरंग ।।

             िूलहे की लकदड़याँ िेता,         भोर आ गए िनुज अवताररी,

              पंद्यों को टहदनयाँ िेता ।    सभरी बन रहे अदत बलकाररी ।        दहंिरी भाषा दहंि के , जरीवन का आिार ।।
             िजा आता रोदटयाँ खाकर,          क ु ् क्षण िें हरी ढेर कर दिया,   हि दहंिरी से दहंिरी की कर सवपन साकार ।।
             पंद्यों की बोदलयाँ पाकर ।    उसके  जरीवन का फेर हर दलया ।

                                                                             बाइस भाषा िेश िें, पातरी हैं समिान ।
               सावन िें झला झलते,         उसरी जगह पर एक सड़क पड़री है,       दहंिरी उनिें एक है, बहन बड़री पहिान ।।
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             िारों ओर िसतरी िें घूिते ।       वाहनों की लड़री खड़री है ।
             झले लताओं से लटक कर,           िुएँ ने जरीना बेहाल कर दिया,     दहंिरी उिूमा तेलगू , कन्नड़ सुनो सुजान ।
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            फलों के  रस को गटक कर ।       बरीिाररयों का जंजाल िर दिया ।
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           जरीवन लगता बहुत सरल र्ा,          नेता अपने कक्ष िें जाकर,
             तदनक कहरी नहीं गरल र्ा ।      नारे लगाते है िासक टाँगकर ।

           इक रोज सरकाररी बाबू आकर,          पेड़ लगाओ, पेड़ लगाओ,
            दिट्री िे गया सब सिझाकर ।       और सबका जरीवन बिाओ ।                                   सुवमत क ु मार
                                                                                                       अधयापक

              घर िें जैसे िाति ्ाया,                              सवचन
           सिझ दकसरी के  क ु ् न आया ।                         अधयापक

               इिर-उिर रहे भागते,
              रहे भर दिन-रात जागते ।




                                                                            fuxe vkyksd ¼o"kZ&2024½        39
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